जब थक जाओ रिश्तों में चलते-चलते,
जब थक जाओ सबको खुश करते-करते,
तब कुछ पल अपनी खुशियों के लिए सोचना,
तब कुछ पल अपने सपनों के लिए सोचना।
जब थक जाओ लोगों की बातें सुनते-सुनते ,
जब थक जाओ खुद को साबित करते-करते,
तब कुछ पल अपने मन की आवाज सुनना।
तब कुछ पल एक नादान बच्चा बन जाना।
जब थक जाओ अपनों को आवाज लगाते-लगाते,
जब थक जाओ सबको मनाते-मनाते,
तब कुछ पल मौन हो जाना।
तब कुछ पल आवारा सा हो जाना।
जब थक जाओ झुकते-झुकते,
जब थक जाओ हारते-हारते,
तब कुछ पल अपनी गैरत की सोचना।
तब कुछ पल अपनी अहमियत की सोचना।
खुश तो लोग हर पल भगवान से भी नहीं होते,
तुम भी कुछ पल कुछ अच्छा ना करना।