चलिए आज पढ़ते हैं विक्रमादित्य और बेताल की एक और रोचक कहानी है:
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बेताल की दूसरी चुनौती
एक बार फिर से विक्रमादित्य ने बेताल को अपने कंधे पर उठाया, तो बेताल ने उसे एक और कहानी सुनानी शुरू की:
कहानी: सच्चा प्रेम और त्याग
किसी राज्य में एक राजा की बहुत सुंदर बेटी थी, जिसका नाम रत्नावली था। राजकुमारी का विवाह एक पड़ोसी राज्य के राजा के बेटे राजकुमार वीरेंद्र से हुआ। विवाह के बाद दोनों बहुत खुश थे और राजकुमारी अपने पति से अत्यधिक प्रेम करती थी।
कुछ वर्षों बाद, एक दिन राजा वीरेंद्र की सेना को युद्ध में जाना पड़ा, और वह खुद युद्ध में जाने के लिए तैयार हुआ। युद्ध में वीरेंद्र गंभीर रूप से घायल हो गया और उसकी जान मुश्किल से बचाई जा सकी। वह लौट तो आया, लेकिन उसकी चोटों के कारण वह चल-फिर नहीं सकता था, और उसका शरीर बहुत कमजोर हो गया।
इस घटना के बाद, रत्नावली ने पूरे राज्य के कर्तव्यों का पालन करना शुरू किया और अपने पति की देखभाल में अपना जीवन समर्पित कर दिया। उसकी देखभाल और प्रेम के कारण वीरेंद्र की हालत धीरे-धीरे सुधरने लगी। लेकिन एक दिन राज्य में एक धनी व्यापारी आया, जिसने रत्नावली के सामने विवाह का प्रस्ताव रखा। उसने कहा कि वह रत्नावली के पति के इलाज के सारे खर्चे उठाने को तैयार है, लेकिन बदले में वह रत्नावली का पति बनना चाहता है।
अब रत्नावली असमंजस में पड़ गई। उसने सोचा कि यदि वह इस प्रस्ताव को स्वीकार करती है, तो उसका पति बेहतर उपचार प्राप्त कर सकता है और स्वस्थ हो सकता है। लेकिन यह भी तय करना मुश्किल था कि क्या वह अपने सच्चे प्रेम का त्याग कर दे।
यह कहानी सुनाने के बाद बेताल ने विक्रमादित्य से पूछा, "राजन, बताओ कि रत्नावली को क्या करना चाहिए था? क्या उसे अपने पति का उपचार कराने के लिए त्याग कर देना चाहिए था, या अपने प्रेम के प्रति वफादार रहना चाहिए था?"
विक्रमादित्य का उत्तर:
विक्रमादित्य ने थोड़ी देर सोचा और कहा, "रत्नावली का पति उसके प्रेम और देखभाल की बदौलत अब तक जीवित था। उसका प्रेम सच्चा था, और सच्चे प्रेम में त्याग का स्थान नहीं होता। यदि वह अपने पति को छोड़ देती, तो वह अपने प्रेम की सच्चाई से खुद ही दूर हो जाती। सच्चा प्रेम हमेशा वफादारी और त्याग की बजाय समर्पण की भावना रखता है। इसलिए रत्नावली को अपने पति के प्रति वफादार रहना चाहिए था।"
विक्रमादित्य का उत्तर सुनकर बेताल ने कहा, "राजन, तुमने एक बार फिर सही उत्तर दिया। लेकिन चूँकि तुमने जवाब दे दिया, इसलिए मैं अब फिर से चला!" और बेताल फिर से उड़कर पेड़ पर चला गया।
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इस तरह हर बार बेताल राजा विक्रमादित्य को चुनौती देता और उसकी बुद्धिमत्ता की परीक्षा लेता।
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