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विक्रम और बेताल की बेमिसाल कहानियां -भाग -4

Writer's picture: Anu GoelAnu Goel

विक्रम और बेताल भारतीय लोक कथाओं का एक अद्भुत संग्रह है, जो राजा विक्रमादित्य और एक भूत (बेताल) के संवाद पर आधारित है। इन कहानियों का मूल उद्देश्य मनोरंजन के साथ-साथ नैतिक शिक्षा प्रदान करना है। इनमें से एक रोचक कहानी प्रस्तुत है:


धर्म औ कर्तव्य की परीक्षा


Vikram Betaal Stories

एक बार फिर राजा विक्रमादित्य बेताल को पेड़ पर से पकड़ कर ले चलते हैं और बेताल ने फिर से राजा विक्रम को कहानी सुनाने की शुरुआत की उसकी वहीं शर्त के साथ कि अगर से राजन अगर तुमने मेरे प्रश्न का सही उत्तर दिया नहीं दिया तो मैं तेरे सिर के टुकड़े टुकड़े कर दूंगा और अगर सही उत्तर दिया तो मैं फिर उड़ जाऊंगा 👻👻👻


कहानी:


एक नगर में चंद्रसेन नामक एक राजा शासन करता था। उसकी प्रजा सुखी और समृद्ध थी और अपने राजा को बहुत पसंद करती थी। राजा का एक मंत्री था, धर्मशील, जो अपने न्यायप्रियता और ईमानदारी के लिए प्रसिद्ध था। एक दिन मंत्री का पुत्र राजमहल में खेलते हुए गलती से राजा की प्रिय मूर्ति को तोड़ देता है।

जब राजा को यह बात पता चली, तो वह क्रोधित हो गया और आदेश दिया कि मंत्री के पुत्र को दंड दिया जाए। धर्मशील ने राजा के आदेश का पालन करते हुए स्वयं अपने पुत्र को दंड के लिए प्रस्तुत किया।


राजा ने मंत्री की ईमानदारी से प्रभावित होकर दंड को माफ कर दिया, लेकिन यह प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि क्या मंत्री ने अपने पुत्र के प्रति कठोरता दिखाई या राजा का कर्तव्य निभाने में कोई चूक की?

बेताल का प्रश्न:

"राजन, बताओ, धर्मशील का अपने पुत्र को दंड के लिए प्रस्तुत करना सही था या गलत? क्या उसने अपने पुत्र के प्रति अन्याय किया?"


विक्रम का उत्तर:

राजा विक्रमादित्य ने उत्तर दिया, "धर्मशील ने कोई अन्याय नहीं किया। उसने अपने कर्तव्य को सर्वोपरि रखा। यदि वह अपने पुत्र को दंड से बचाने का प्रयास करता, तो उसकी सत्यनिष्ठा और न्यायप्रियता पर प्रश्न उठता। एक सच्चा न्यायप्रिय व्यक्ति वही है, जो अपने परिवार और प्रजा के प्रति समान भाव रखे।"


Stories of Vikram and Betaal

यह सुनकर बेताल ने कहा, "राजन, तुमने सटीक उत्तर दिया, लेकिन अपनी चतुराई के कारण मैं फिर से चला।" और बेताल उड़कर पेड़ पर लौट गया।


शिक्षा:

यह कहानी सिखाती है कि सच्चे धर्म और न्याय का पालन करने के लिए व्यक्ति को अपने निजी संबंधों से ऊपर उठकर सोचना चाहिए।

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