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Writer's pictureAnu Goel

विक्रम और बेताल की बेमिसाल कहानियां -भाग 2

विक्रम और बेताल की कहानियां भारतीय पौराणिक कथाओं में बहुत प्रसिद्ध हैं। ये कहानियां राजा विक्रमादित्य और बेताल नामक एक भूत के बीच संवादों पर आधारित हैं। यहां विक्रम और बेताल की एक रोचक कहानी प्रस्तुत है:

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कहानी: न्यायप्रिय राजा और त्यागी साधु


एक समय की बात है, उज्जैन के राजा विक्रमादित्य अपनी प्रजा के कल्याण और न्याय के लिए प्रसिद्ध थे। उन्होंने निश्चय किया कि वे तपस्वी साधुओं के उपदेशों को समझने के लिए उन्हें अपने राज्य में बुलाएंगे। इसी बीच उन्हें एक विशेष साधु के बारे में पता चला जो नदी के किनारे एक मंदिर में ध्यान लगा रहा था।


राजा विक्रम साधु के दर्शन करने पहुंचे। साधु ने राजा से कहा, "हे राजन! यदि तुम सच्चे न्यायप्रिय हो तो मेरी एक परीक्षा में सफल हो जाओगे। रात में इस श्मशान घाट पर आओ और उस पीपल के पेड़ से एक बेताल को पकड़कर मेरे पास लाओ। ध्यान रखना, बेताल बहुत चालाक है और तुम्हें रास्ते में कहानियां सुनाएगा। यदि तुमने उसकी कहानी का उत्तर दिया तो वह उड़कर वापस चला जाएगा।"

राजा विक्रम ने साधु की आज्ञा मान ली। रात को श्मशान में जाकर उन्होंने बेताल को पकड़ा और उसे कंधे पर डालकर ले चल पड़े। बेताल ने एक कहानी सुनानी शुरू की:


कहानी के भीतर की कहानी


एक नगर में तीन भाइयों की बहन का विवाह हो गया। कुछ समय बाद बहन का पति किसी दुर्घटना में मर गया। बहन को गहरा आघात पहुंचा और वह शोक में डूब गई। तीनों भाई अपनी बहन की देखभाल करने लगे।

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समय के साथ एक दिन सबसे बड़े भाई ने फैसला किया कि वह तांत्रिक विद्या से बहन के पति को पुनर्जीवित करेगा। उसने एक दुर्लभ मंत्र सीखकर प्रयास किया, लेकिन असफल रहा। दूसरा भाई जो औषधियों का ज्ञाता था, उसने भी प्रयास किया, परंतु सफल नहीं हो सका। अंत में सबसे छोटे भाई ने अपने प्राणों का बलिदान देकर बहन के पति को पुनर्जीवित कर दिया।


अब प्रश्न यह था कि बहन का वास्तविक पति कौन है? क्या वह जिसे पुनर्जीवित किया गया, या फिर वह भाई जिसने अपने प्राण त्यागे?


विक्रम का उत्तर


राजा विक्रम ने कहा, "इस कहानी में बहन का असली पति वही है जिसे पुनर्जीवित किया गया। भाई ने अपने प्राण त्यागे, परंतु उसका रिश्ता केवल एक त्यागी के रूप में था, न कि पति के रूप में।"

उत्तर सुनते ही बेताल ने ठहाका लगाया और वापस पेड़ पर जाकर लटक गया, लेकिन राजा विक्रम ने हिम्मत नहीं हारी और बेताल को फिर से पकड़ लिया।


इस तरह से विक्रमादित्य और बेताल के बीच रोमांचक कहानियों का सिलसिला चलता रहा, और हर बार बेताल राजा की न्यायप्रियता की परीक्षा लेने के लिए नई कहानियां सुनाता रहा।

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