यूं तो कृष्ण हम सभी के हैं, परंतु राधा के कृष्ण सबसे अलग हैं। वो प्रेम की परिभाषा हैं, वो समर्पण की प्रकाष्ठा हैं , वो राधा का अनंत कालीन इंतजार हैं, वो एक दूसरे के कुछ भी नहीं फिर भी सब कुछ हैं, उनका कोई रिश्ता नहीं फिर भी युगों -युगों से हर रिश्ते का आधार हैं।
जहां हमारे समाज में बिना शादी के कोई भी संबंध जायज नहीं ,वहीं राधा रानी के कृष्ण से पवित्र और अगाध प्रेम ने उन्हें हर मंदिर, हर घर में पूजनीय बना दिया।
राधा का प्रेम ना होता तो शायद श्रीकृष्ण सिर्फ द्वारिकाधीश ही रह जाते, हमारे मंदिरों और हमारे घरों में भगवान बनकर ना पूजें जाते।
राधा के प्रेम ने कृष्ण को कृष्ण बनाया, हम सबके लिए भगवान बनाया ।
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श्री राधा जी के लिए श्रीकृष्ण सिर्फ कृष्ण है।
यशोदा मैया ने कृष्ण से प्रेम किया तो वो उनके पुत्र बन गए , मीरा ने कृष्ण से प्रेम किया तो वो उनके आराध्य बन गए, रुक्मणी जी ने कृष्ण से प्रेम किया तो वो उनके उनके पति बन गए, पर राधा जी का प्रेम बड़ा ही विचित्र था उन्होंने कृष्ण को कृष्ण ही रहने दिया। उन्होंने कृष्ण को बदला नहीं, उनके रिश्ते का कोई नाम नहीं था बस कृष्ण उनका जीवन थे और वो कृष्ण का जीवन थी। उनका प्रेम इसलिए भी विशेष था क्योंकि उन दोनों के बीच ' मैं ' खत्म हो गया था बस 'आप ' रह गया था और वो ही दुनिया का सबसे मुश्किल काम है- किसी भी रिश्ते में दो प्राणियों के बीच मैं खत्म हो जाए और आपकी खुशी ,आपका प्रेम रह जाए ।
" तत् सुखे सुखीतम "
कृष्ण राधा के समक्ष हैं या नहीं उन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता था क्योंकि राधा के कृष्ण ऐसे हैं कि उनमें ही सम्माहित है।
"जब नयन मुंदूं कृष्ण दर्शन हो जाए "।
"राधा ही कृष्ण हैं और कृष्ण ही राधा "
राधा का कृष्ण प्रेम इतना अद्भुत है कि एक दिन राधा रानी अपनी सखियों को समझाते हुए कहती हैं कि सखियों प्रेम में अपना सुख नहीं देखा जाता अगर मैं अपना सुख देखती तो कृष्ण कृष्ण बोलती क्योंकि मुझे उसमें ही सुख मिलता है पर मैं खुद अपने ही मुख से अपना ही नाम बोलती रहती हूं क्योंकि मेरे कृष्ण को उससे ही सुख मिलता है।
कृष्ण कृष्ण कहतीं रहूं,
कृष्ण कृष्ण ही गाऊं,
कृष्ण में ही जीवित रहूं,
कृष्ण में ही समा जाऊं।
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" रिझाते रिझाते जीवन बिता रिझे ना तुम "श्याम",
एक पल में ही रिझ गऐ,जब मुंह से निकला राधा नाम ।।
राधा - कृष्ण का रिश्ता
कहा जाता है कि जब श्रीकृष्ण आठ साल के थे, तो उनकी मुलाकात राधा से हुई, जो 12 साल की थीं। श्रीकृष्ण राधा से प्रेम करने लगे। दोनों एक दूसरे से विवाह भी करना चाहते थे। जब ये बात राधा के घर वालों को पता चली, तो उन्होंने राधा को घर में कैद कर दिया। वह लोग राधा और कृष्ण की विवाह के इसलिए भी खिलाफ थे क्योंकि राधा की मंगनी हो चुकी थी।
कहा जाता है कि श्रीकृष्ण ने राधा रानी से शादी करने की हठ कर दी थी। इस पर यशोदा माता और नंदबाबा उन्हें ऋषि गर्ग के पास ले गए। ऋषि गर्ग ने भी कान्हा को बहुत समझाया।
इसके बाद कान्हा को मथुरा जाना पड़ गया, फिर कृष्ण हमेशा के लिए वृंदावन छोड़कर मथुरा चले गए। उन्होंने राधा से वादा किया था कि वह वापस लौटेंगे लेकिन वह कभी भी वापस नहीं आए।
राधा और कृष्ण के प्रेम की एक बड़ी अनोखी बात थी। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, राधा रानी का विवाह रायाण नाम के व्यक्ति से हुआ था, जो कि माता यशोदा के भाई थे यानि रिश्ते में राधा कृष्ण की मामी लगती थीं।
कृष्ण को भले ही बचपन में राधा से प्रेम था लेकिन राधा की मंगनी पहले से ही हो चुकी थी। बड़े होने पर राधा और कृष्ण ने इस बात को समझा और विवाह न करके ये मानव समाज को ये शिक्षा दी कि प्रेम करना गलत बात नहीं, पर नैतिकता और परिवार के विरूद्ध जाकर अपने प्रेम को पाने का जतन करना सही नहीं है।
क्यों नहीं हुआ राधा और कृष्ण का विवाह?
राधा और कृष्ण का विवाह न होने के कई कारणों का वर्णन हैं। इसमें से एक कारण नारद जी का श्राप है। रामचरित मानस के बालकांड के अनुसार, माता लक्ष्मी के स्वयंवर में नारद जी भी जाना चाहते थे। भगवान विष्णु ने नारद जी के साथ छल करते हुए उन्हे वानर का स्वरूप दे दिया, जिसकी वजह से माता के स्वयंवर में नारद जी का काफी उपहास हुआ। जब नारद जी को इस बात का पता चला तो वह बैकुंठ पहुंचकर विष्णु जी से बहुत नाराज हुए और श्राप दिया कि उन्हें पत्नी का वियोग सहना होगा। यही वजह है कि रामचंद्र अवतार में उन्हें सीता का वियोग सहना पड़ा और कृष्ण अवतार में देवी राधा से उनका विवाह न हो सका।
कुछ लोगों का यह भी मानते हैं कि देवी राधा ने ही श्रीकृष्ण से विवाह करने के लिए मना कर दिया था। राधा यशोदा के पुत्र कान्हा से प्रेम करती थीं , द्वारिकाधीश श्रीकृष्ण से नहीं । जब कृष्ण मथुरा चले गए तो राधा रानी खुद को महलों के जीवन के लिए उपयुक्त नहीं मानती थीं। वह एक राजा से विवाह करके रानी नहीं बनना चाहती थीं, इसलिए राधा ने श्रीकृष्ण से विवाह नहीं किया था।
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ये भी कहा जाता है कि राधा को ज्ञान हो गया था कि श्रीकृष्ण भगवान का अवतार हैं। वह खुद को उनका भक्त मानने लगी थीं। राधा श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो चुकी थीं और भक्त भगवान से विवाह नहीं कर सकता, इसलिए भी राधा रानी ने कृष्ण से विवाह नहीं किया।
" संसार जिस ढाई अक्षर में उलझा है... उसे प्रेम कहते हैं,
हमें जिस ढाई अक्षर ने सुलझाया है,,, उसे हम,
कान्हा कहते हैं......।"
श्रीकृष्ण राधा के पास वापस क्यों नहीं लौटे?
भगवान श्रीकृष्ण के जीवन की हर बात, उनकी शरारतें, उनकी लीलाओं और छल सभी कुछ मनुष्यों के लिए कोई न कोई सीख ही थीं।
राधा से विवाह ना करना भी मनुष्यों को प्रेम की असली परिभाषा से परिचित कराना था। कहा जाता है कि एक बार देवी राधा ने कान्हा से पूछा कि वह उनसे विवाह क्यों नहीं करना चाहते।
इस पर श्रीकृष्ण ने कहा कि कभी अपनी आत्मा से भी विवाह होता है क्या?
श्रीकृष्ण राधा को खुद से अलग नहीं बल्कि अपना ही अस्तित्व मानते थे। वह मनुष्यों को यह सीख देना चाहते थे कि प्रेम सिर्फ एक भौतिक संबंध नहीं है बल्कि आध्यात्मिक प्रकृति है। जरूरी नहीं कि जिससे हम प्रेम करें उससे विवाह करेंगे तभी हमारा प्रेम परिपूर्ण होगा।
प्रेम तो आत्मा से होता है और विवाह सिर्फ समाज के लिए होता है।
प्रेम में विवाह ना हो तब भी प्रेम, प्रेम ही रहता है,
चाहे परिस्थितियां जो भी हों,
पर विवाह में प्रेम ना हो तो वो या तो रद्द हो जाता है या फिर सिर्फ एक सामाजिक दायित्व रह जाता है।
राधा कृष्ण बिना विवाह भी सदियों से एक ही हैं। राधा से कृष्ण का समाजिक रूप से कोई रिश्ता नहीं था फिर भी श्रीकृष्ण ने समाज में श्रीराधा को सम्मान दिलाने के लिए अपने नाम से पहले श्री राधा रानी के नाम को स्थान दिया।
राधा कृष्ण
जहां कृष्ण का नाम है वहां राधा का स्मरण स्वाभाविक है।
" संगीत है श्रीकृष्ण, सुर है श्रीराधे,
शहद है श्रीकृष्ण, मिठास है श्रीराधे,
पूर्ण है श्रीकृष्ण, परिपूर्ण है श्रीराधे,
आदि है श्रीकृष्ण,अनंत है श्रीराधे।।"
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