मेरे प्यारे बांके बिहारी लाल
- Anu Goel
- Mar 21
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बांके बिहारी मंदिर वृंदावन, उत्तर प्रदेश में स्थित भगवान श्रीकृष्ण का एक प्रसिद्ध मंदिर है। यह मंदिर विशेष रूप से उनकी 'बांके बिहारी' रूप में पूजा का केंद्र है।
बांके बिहारी नाम का अर्थ
'बांके' का अर्थ है हल्का सा झुका हुआ और 'बिहारी' का अर्थ है खेलने वाले या आनंद में रहने वाले। यह नाम भगवान श्रीकृष्ण की अद्वितीय, त्रिभंग मुद्रा (तीन स्थानों से झुकी हुई) को दर्शाता है, जिसमें वे अपनी बांसुरी बजाते हैं।
मंदिर का इतिहास
इस मंदिर की स्थापना 1864 में स्वामी हरिदास जी ने की थी, जो महान संत और भक्त कवि थे। माना जाता है कि श्रीकृष्ण और राधा जी ने स्वयं उनके भजन से प्रसन्न होकर साक्षात दर्शन दिए, और फिर उन्हीं की कृपा से यह दिव्य मूर्ति प्रकट हुई।
विशेषताएँ
आरती की परंपरा: इस मंदिर में अन्य मंदिरों की तरह नियमित आरती नहीं होती। बांके बिहारी जी को आरती कराने से बचाया जाता है क्योंकि भक्तों की भक्ति से वे स्वयं आनंद में आ जाते हैं।
दर्शन की शैली: यहाँ भगवान के दर्शन पर्दे के बीच-बीच में होते हैं ताकि भक्तों की गहरी भक्ति की वजह से वे कहीं मूर्ति में ही विलीन न हो जाएँ।
त्योहारों की भव्यता: यहाँ झूलन उत्सव, जन्माष्टमी, होली और हरियाली तीज अत्यंत धूमधाम से मनाए जाते हैं।
भक्तों के लिए महत्व
बांके बिहारी मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति का प्रतीक है। यहाँ आते ही भक्त अपने सारे दुःख-दर्द भूलकर बस श्रीकृष्ण की अलौकिक लीलाओं में डूब जाते हैं।
बांके बिहारी जी की लीलाएँ भक्तों के लिए अद्भुत और चमत्कारी मानी जाती हैं। उनकी भक्ति में लीन भक्तों को कई बार ऐसे अनुभव होते हैं जो सिद्ध करते हैं कि भगवान स्वयं अपने भक्तों की देखभाल करते हैं। यहाँ कुछ प्रसिद्ध लीलाएँ हैं:
1. स्वामी हरिदास के सामने प्रकट होना
स्वामी हरिदास जी, जो महान संत और श्रीकृष्ण के परम भक्त थे, निधिवन में भजन-कीर्तन कर रहे थे। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण और राधा जी उनके सामने प्रकट हुए। भक्तों के आग्रह पर वे एक ही स्वरूप में मूर्ति रूप में प्रकट हो गए, जिसे आज हम बांके बिहारी जी के रूप में पूजते हैं।
2. भक्त के पीछे-पीछे वृंदावन से बाहर जाना
कहते हैं कि एक बार एक वृद्ध महिला प्रतिदिन बांके बिहारी जी के दर्शन करने वृंदावन आती थी। जब वह बहुत वृद्ध हो गई और चलने में असमर्थ हो गई, तो उसने रोते हुए कहा— "बिहारी जी! अब मैं दर्शन करने नहीं आ पाऊँगी!"उसी रात बिहारी जी उसके सपने में आए और बोले— "माँ, चिंता मत करो, अब मैं खुद तेरे पास आऊँगा!"अगले दिन, जब महिला अपने गाँव के पास गई तो देखा कि वहाँ बिहारी जी की एक दिव्य मूर्ति प्रकट हो गई थी।
3. भक्त को दर्शन देकर मूर्ति में विलीन होना
एक बार एक भक्त बिहारी जी के दर्शन के लिए आया, लेकिन हर बार जब वह भगवान को देखने की कोशिश करता, तो पर्दा गिर जाता। यह देखकर वह रो पड़ा और बोला— "हे प्रभु! मैं तो आपके दर्शन किए बिना मर जाऊँगा!"यह सुनकर बांके बिहारी जी ने पर्दे के बीच से मुस्कुराते हुए दर्शन दिए। भक्त आनंद में डूब गया, लेकिन जैसे ही उसने भगवान की ओर बढ़ने की कोशिश की, मूर्ति में विलीन हो गए।
4. निधिवन में हर रात रासलीला
यह मान्यता है कि आज भी निधिवन में हर रात श्रीकृष्ण और राधा जी की रासलीला होती है। कहा जाता है कि जो कोई भी इसे देखने की कोशिश करता है, वह अंधा या पागल हो जाता है। इसीलिए, रात होते ही निधिवन के द्वार बंद कर दिए जाते हैं, और वहाँ कोई इंसान तो दूर पशु- पक्षी भी नहीं ठहरते।
5. बिहारी जी का पर्दे के पीछे छिपना
बांके बिहारी जी के दर्शन विशेष रूप से पर्दे के बीच-बीच में कराए जाते हैं। इसका कारण यह बताया जाता है कि भगवान की सुंदरता और आकर्षण इतना अद्भुत है कि अगर कोई उन्हें लगातार देखता रहे, तो वह संसार के मोह को भूलकर उन्हीं में लीन हो सकता है। इसीलिए पुजारी बार-बार पर्दा खींचते हैं ताकि भक्तों का ध्यान संसार में भी बना रहे।
बांके बिहारी मंदिर की होली पूरे भारत में प्रसिद्ध है और इसे देखने के लिए देश-विदेश से हजारों भक्त वृंदावन आते हैं। यह होली भगवान कृष्ण और राधा जी के प्रेम और रंगों से भरी दिव्य लीला को सजीव कर देती है।
हर धर्म और जाति से ऊपर है बांके बिहारी का अपने भक्तों से प्रेम
रसखान, जिन्हें "सुफ़ी संत रसखान" भी कहा जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के अनन्य भक्त और महान कवि थे। वे जन्म से मुस्लिम थे, लेकिन उनकी कृष्णभक्ति इतनी प्रगाढ़ थी कि वे अपनी रचनाओं में श्रीकृष्ण के प्रेम और भक्ति को अत्यंत भावुकता से व्यक्त करते थे।

रसखान की कथा
रसखान का मूल नाम सैयद इब्राहिम था और वे एक अमीर मुस्लिम परिवार में जन्मे थे। कहा जाता है कि वे शुरू में सांसारिक प्रेम में लिप्त थे, लेकिन एक घटना ने उनकी पूरी जिंदगी बदल दी।
कृष्ण भक्ति की ओर झुकाव
एक बार वे किसी महिला के प्रेम में इतने लीन हो गए कि उसके पीछे-पीछे वृंदावन पहुँच गए। वहाँ पर उन्होंने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को देखा और उनके प्रति अपार श्रद्धा उत्पन्न हुई। इस घटना ने उनके जीवन को पूरी तरह से बदल दिया और वे श्रीकृष्ण की भक्ति में लीन हो गए।
वृंदावन में साधु से भेंट
एक अन्य कथा के अनुसार, रसखान को किसी संत ने श्रीमद्भागवत पढ़ने की सलाह दी। जब उन्होंने इसे पढ़ा, तो वे श्रीकृष्ण के प्रेम में पूरी तरह डूब गए और अपने सांसारिक जीवन को त्यागकर वृंदावन में रहने लगे।
गोवर्धन पर पत्थर पर श्रीकृष्ण के दर्शन
एक मान्यता यह भी है कि रसखान ने गोवर्धन पर्वत पर गहन तपस्या की थी। उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने उन्हें दर्शन दिए और कहा कि वे जन्म-जन्मांतर तक उनके भक्त रहेंगे।
रसखान की रचनाएँ
रसखान की कविताएँ ब्रज भाषा में हैं और उनमें श्रीकृष्ण के प्रति अद्भुत प्रेम प्रकट होता है। उनकी प्रसिद्ध पंक्तियाँ हैं:
"मानुष हो तो वही रसखान, बसै ब्रज गोकुल गाँव के ग्वारन।"(अर्थ: यदि मनुष्य बनकर जन्म लेना हो, तो मैं गोकुल में ग्वालों के बीच जन्म लूँ।)
उनकी भक्ति और प्रेम के कारण उन्हें "कृष्ण भक्त शिरोमणि" कहा जाता है। उनके पदों में प्रेम, वात्सल्य, और भक्ति की अद्भुत झलक मिलती है।
रसखान ने अपना अंतिम समय वृंदावन में बिताया और यहीं उनकी समाधि बनी हुई है, जो आज भी कृष्ण भक्तों के लिए एक पवित्र स्थल मानी जाती है।
रसखान की कथा हमें यह सिखाती है कि ईश्वर की भक्ति के लिए धर्म, जाति, या परंपरा कोई बाधा नहीं होती। उनका प्रेम और समर्पण, किसी को भी भक्ति के मार्ग पर प्रेरित कर सकता है।
कैसे मनाई जाती है बांके बिहारी मंदिर की होली?
1. फूलों की होली (फूलों वाली होली)

होली के पांच दिन पहले से ही मंदिर में फूलों की होली खेली जाती है।
पुजारी और सेवायत भगवान बांके बिहारी जी को रंग-बिरंगे फूल अर्पित करते हैं और भगवान भी अपने भक्तों पर प्रेम की वर्षा करते हैं।
यह होली विशेष रूप से वसंत पंचमी के बाद शुरू होती है।
2. गुलाल और अबीर की होली
रंगभरनी एकादशी से बांके बिहारी मंदिर में अबीर-गुलाल उड़ाया जाता है।
मंदिर के सेवायत खुद भगवान की मूर्ति को रंगों से सजाते हैं और भक्तों पर गुलाल उड़ाते हैं।
इस दिन बिहारी जी को विशेष बसंती वस्त्र पहनाए जाते हैं और होली के पारंपरिक फाग गीत गाए जाते हैं।

3. भक्तों के साथ लीला
बांके बिहारी मंदिर में होली के समय कोई विशेष आरती नहीं होती, बल्कि इसे खेलने का पर्व माना जाता है।
भगवान स्वयं अपने भक्तों के साथ रंग खेलते हैं।
मान्यता है कि भगवान इस दौरान स्वयं अपने भक्तों के बीच होते हैं, इसलिए हर कोई इसे उत्साह से मनाता है।
4. नंदगांव और बरसाना की होली से जुड़ाव
वृंदावन की होली, नंदगांव और बरसाना की प्रसिद्ध लट्ठमार होली से भी जुड़ी होती है।
पहले बरसाना की गोपियाँ नंदगांव के ग्वालों को लाठियों से मारती हैं, और फिर नंदगांव में गोपों की बारी आती है।
वृंदावन में इस परंपरा को रासलीला के रूप में मनाया जाता है।
बांके बिहारी मंदिर की होली का महत्व
सीधे भगवान के साथ होली खेलने का अनुभव: ऐसा माना जाता है कि इस दौरान बिहारी जी अपने भक्तों के साथ खेलते हैं।
भक्ति और प्रेम का संगम: इसमें शुद्ध प्रेम और भक्ति का रंग घुला होता है।
संसार के मोह को भूलने का अवसर: इस पर्व में भक्त अपनी चिंताओं को भूलकर श्रीकृष्ण की भक्ति में डूब जाते हैं।
बांके बिहारी जी की लीलाएँ यही सिखाती हैं कि सच्चे भक्त के लिए भगवान हमेशा मौजूद रहते हैं। वे भक्तों की हर पुकार सुनते हैं और जब भी आवश्यकता होती है, अपनी उपस्थिति का अनुभव कराते हैं।
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