आज के दौर में कभी ना कभी आपने भी महसूस किया होगा कि सभी रिश्ते -नाते पैसौं और मोबाइल के वशीभूत होकर रह गए हैं।
दोस्ती-यारी सब पैसे के होकर रह गई है,
जितना ज्यादा पैसा उतना ज्यादा सम्मान और रूतबा फिर चाहे आप लाख बुरे इंसान हो ।
प्यार, ममता, भगवान सब पैसा हो गया है।
हर रिश्ता आज पैसे के लिए बनता है और पैसों के लिए बिगड़ता है।
जब तक जरुरत है लोग आपसे प्यार से बात करते हैं और जरूरत खत्म होते ही पहचानते तक नहीं।
आपकी पहचान आज आपका महंगा मोबाइल है,
आपका चरित्र नहीं, पढ़ाई नहीं।
आज शायद इस विषय पर लिखने की कोई खास जरूरत नहीं थी पर कल एक अजीब, हृदयविदारक और कुछ पल के लिए एकदम शून्य में ले जाने वाली खबर सुनी कि लखनऊ में एक आर्मी ऑफिसर के मात्र 16 साल के बेटे ने अपनी ही जन्म देने वाली मां को सिर्फ इसलिए सोते समय अपने पिता की पिस्तौल से सिर में गोली मार कर हत्या कर दी और बस इतना ही नहीं उसने तीन दिन तक अपनी मृत मां को कमरे में बंद रखा और अपनी दस साल की बहन को भी डरा कर रखा कि अगर किसी को बताया तो तुम्हें भी मार डालूंगा और mobile, laptop पर आराम से movie देखी , game खेले, मनपसंद खाना खाया और अपने पड़ोसियों और पिता से झूठ बोला कि मां दादी के घर गई हैं पर जब तीन दिन बाद room freshener से भी बदबू नहीं रूकी तब अपने पिता को फोन कर बताया कि एक बिजली ठीक करने वाले अंकल आए थे उन्होंने मां को मार डाला।
अब इसे किसकी गलती समझे मां की , बच्चे की या आधुनिकरण की जहां मां जैसा निस्वार्थ, ममतामय रिश्ते का भी आज खून हो गया है। वजह चाहे जो भी रही हो पर मां तो मां होती है ।
हम और हमारा समाज ये किस तरफ जा रहा है।
आज से मात्र 15 -20साल पुरानी हमारी generation का शायद ही कोई बच्चा - जवान रहा होगा जो अपनी मां-बाबा से डंडे, थप्पड़, चप्पल, बेलन, झाड़ू से ना पिटा हो और school में teacher के डंडे- थप्पड़ ना खाएं हो । फिर इन 15-20सालों में ऐसा क्या बदल गया जो आज हम यहां पहुंच गए कि अपने बच्चों को डांटने से भी डरते हैं उन्हें सब सुख- सुविधा उपलब्ध करवाने और अच्छे school मेंं पढ़ाई करवाने के बाद भी उन्हें एक इंसान बनाना तो दूर उन्हे कुछ अच्छे संस्कार तक नहीं दे पा रहे।
अगर देखा जाए तो सबसे बड़ा बदलाव सिर्फ mobile और internet ही आया है हमारी जिंदगी में इन 15-20 सालों में जिसने हमारी जिंदगी, समय, घर, दिल, दिमाग हर जगह कब्जा कर लिया है। किसी को अपने ही घर में किसी से बात करने की फुर्सत नहीं है, सब मोबाइल में लगे हैं। बच्चे बाहर खेलने नही जाते ,
किसी रिश्तेदार से मिलते नहीं ।
उन्हें अपने और मोबाइल के सिवा कुछ नहीं पता।
जितना अधिक आपके पास पैसा है उतने ही ज्यादा आपके शुभचिंतक , रिश्तेदार और दोस्त होते हैं।
आप लाख किसी की मदद करें अपना समझे पर सिर्फ चंद पैसे उन पर भारी पड़ जाते हैं।
लोग आजकल दोस्ती -यारी इंसान का दिल देखकर नहीं बल्कि उसकी हैसियत देखकर करते हैं।
Social networking sites ने ये काम और आसान कर दिया है। अब दोस्ती, प्यार, मोहब्बत एक जरिया हो गया है सिर्फ आगे बढ़ने का, लोग उसके लिए कुछ भी करते हैं। मदद के नाम पर पैसे लेते हैं और फिर block कर देते हैं। और आपको समझ नहीं आता आपकी गलती क्या है? मदद करना या विश्वास करना?
अच्छे- अच्छे घर के बच्चे -बड़े हर दिन किसी ना किसी को बेवकूफ बना 500-1000रू हर दिन लूट लेते हैं। आप ही सोचिए क्या ये सही है ? क्या यह एक तरह का crime नहीं है? विश्वास का टूटना और बुरी आदतों का आदी होना नहीं है?"
हम ये सोचकर जाने देते हैं कि 500 -1000रू के लिए क्या कुछ करना ,पर मेरे एक मित्र ने समझाया कि सोचो मात्र 500रू भी हर दिन एक बंदे से ठगे तो महीने के 15000रू किसी को भी एकदम free के मिल गए और वो भी बिना कुछ काम किए और साथ ही ये ग़लत आदत एक दिन पेशा बन जाएगी बिना मेहनत किए पैसा कमाने का पेशा पर ऐसे लोग एक पल के लिए भी नहीं सोचते ये किसी की मेहनत की कमाई है ,और आप पर विश्वास है और इसका दूसरा पहलू ये भी है जिन्हें सच में मदद की ज़रूरत है कोई उनकी भी मदद नहीं करेगा यही सोचकर कि सब कहानी है।
सिद्धू मूसेवाला हत्याकांड यहां भी
एक मां-बाप ने अपना 28 साल का जवान बेटा सिर्फ इसलिए खो दिया क्योंकि उसकी इतनी तरक्की लोगों को पसंद नहीं आई, उसने रंगदारी के पैसे देने से मना कर दिया और किसी भी धमकी में आकर गाना गाने से मना कर दिया और इसमें भी सबसे बड़ा हाथ उस इंसान का रहा जो उसी का प्रशंशसक बनकर आया । यहां भी पहला खून विश्वास का ही हुआ।
हमारे देश में बढ़ती वृद्ध आश्रम की संख्या इसका जीवित उदाहरण है और वहां सब पढ़े-लिखे , अच्छी-अच्छी नौकरी से सेवानिवृत्त लोग हैं जिन्होंने अपना पूरा जीवन अपने जिन बच्चों की उच्च शिक्षा में लगा दिया, वही बच्चे उन्हीं का घर-बार सब बेचकर उन्हें वृद्ध आश्रम में छोड़ कर या तो विदेश जाकर बस गए या अपने परिवार के साथ अपनी अलग दुनिया बसाकर रहने लगे हैं।
क्या हम भूल जाते हैं हम भी एक दिन बूढ़े होगें , हम भी एक दिन मां-बाप बनेंगे, हमसे भी कोई धोखाधड़ी से हमारी या हमारे किसी अपने की मेहनत की कमाई लूट सकता है , हमें भी कोई अपनी गोली का निशाना बना सकता है और हम तब सिर्फ अपने किए हुए पर पछताने के सिवा कुछ नहीं कर पाएंगे।
इन सब बातों पर गौर करना बहुत जरूरी है और अपने बच्चों को ये सब समझना नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब ये दुनिया एक संवेदनहीन मशीनी दुनिया बनकर रह जाएगी।
आज हमें अपनी प्राथमिकताएं को बदलने की जरूरत है और अपने बच्चों को अच्छे संस्कार देने की जरूरत है जिससे हमारी आने वाली पीढ़ी एक सुखद और शांत माहौल में बेखौफ सांस ले सकें।
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