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धर्म के नाम पर हत्याएं: कब तक मारे जाएंगे निर्दोष लोग? पहलगाम

22 अप्रैल 2025 – एक काली सुबह, जिसने भारत की सबसे खूबसूरत घाटियों में से एक पहलगाम को खून से रंग दिया। जिस जगह को लोग चैन और सुकून की तलाश में चुनते हैं, वहाँ आज मातम पसरा है। एक खूबसूरत सुबह आतंक की भेंट चढ़ गई, जब "कश्मीर रेजिस्टेंस" नामक आतंकी संगठन ने निर्दोष सैलानियों पर अंधाधुंध गोलियां बरसा दीं।


हमले की शुरुआत: एक पल में बदल गई जिंदगी

सभी पर्यटक सुबह के सूरज की हल्की किरणों के साथ बैसारन घाटी में टहल रहे थे। कैमरों की क्लिक और बच्चों की हँसी से गूंजती घाटी में अचानक गोलियों की बौछार सुनाई दी। एक चश्मदीद ने बताया:

"हम हँस रहे थे, फोटो ले रहे थे… अचानक एक धमाका हुआ, फिर गोलियां चलने लगीं। लोग चिल्ला रहे थे, बच्चे रो रहे थे, हम सब इधर-उधर भागने लगे।"

आतंकियों ने घात लगाकर हमला किया। बंदूकधारियों ने महिलाओं, बुजुर्गों और बच्चों को भी नहीं बख्शा। 26 लोग मारे गए, जिनमें दो विदेशी नागरिक और एक 4 साल की बच्ची भी शामिल थी। 17 से ज्यादा घायल हैं, जिनमें कुछ की हालत गंभीर बनी हुई है।

आतंकवादियों की चेतावनी: "यह शुरुआत है…"

हमले के बाद "कश्मीर रेजिस्टेंस" नामक आतंकवादी संगठन ने एक वीडियो जारी किया, जिसमें उन्होंने कहा:

"हम कश्मीर को ‘सांस्कृतिक कब्जे’ से बचा रहे हैं। यह हमला सिर्फ एक संदेश है। अगर सरकार ने बाहरी लोगों को यहाँ बसाना जारी रखा, तो हर घाटी खून से रंगी जाएगी।"

यह धमकी सिर्फ सरकार को नहीं, बल्कि उन लाखों भारतीयों को भी है जो कश्मीर को अपना समझते हैं, प्यार करते हैं और वहाँ की खूबसूरती का हिस्सा बनना चाहते हैं।

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इस हमले में कई ऐसे पल थे जिन्होंने इंसानियत को शर्मसार कर दिया।


करनाल से आए नवविवाहित जोड़े की शादी को अभी सिर्फ 6 दिन हुए थे। वे पहलगाम में भेलपूरी खाते हुए हँसते-खिलखिलाते घूम रहे थे, तभी एक आतंकी ने उनसे उनका धर्म पूछा। उनके पति, जो भारतीय नौ सेना में लेफ्टिनेंट थे, जैसे ही उन्होंने अपना धर्म बताया वैसे ही उनके सीने में गोली उतार दी गई।

नववधु की मांग का सिंदूर खून में बह गया।


एक अन्य परिवार में, जब पति को गोली मारी गई, तो पत्नी ने बिलखते हुए कहा:


> "अगर मेरे पति को मार ही दिया, तो मुझे भी मार दो।"


इस पर आतंकी ने कहा:


> "तुझे नहीं मारेंगे। तू जाकर मोदी को बता देना कि हम लौट आए हैं। ये तो बस शुरुआत है।"

हमले में घायल हुए राजस्थान के व्यापारी विनोद शर्मा ने अस्पताल के बेड से कहा:

"मैं अपनी पत्नी और बच्चों के साथ सिर्फ कुछ दिन चैन की सांस लेने आया था। अब मेरी बेटी बोल नहीं पा रही है, और मेरी पत्नी ICU में है। क्या यही सुकून है?"

एक अन्य घायल महिला, जो पुणे से आई थीं, रोते हुए बोलीं:

"आखिरी पल में मैं अपने बेटे को ढूंढती रही… लेकिन वो चला गया।"

इन बयानों में सिर्फ दर्द नहीं, एक सवाल भी है – क्या हम सुरक्षित हैं? क्या पर्यटन को अब भी "शांति का प्रतीक" कहा जा सकता है?

ऐसे शब्द किसी फिल्म की पटकथा नहीं थे — ये उन चंद सेकंडों की सच्चाई है जब आतंक ने इंसान की आँखों में आँखें डालकर उसकी दुनिया उजाड़ दी।

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सुरक्षा एजेंसियों की कार्रवाई

सेना और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने त्वरित कार्रवाई करते हुए दो आतंकियों को मार गिराया, और अन्य तीन की तलाश जारी है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि इन आतंकियों को सीमा पार से निर्देश मिले थे और हमले की योजना पिछले महीने से बनाई जा रही थी।

राजनीतिक प्रतिक्रिया और देश की भावना

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हमले को “कायरता की पराकाष्ठा” बताते हुए कहा:

"हमारे निर्दोष नागरिकों का खून व्यर्थ नहीं जाएगा। आतंकियों को उनके अपराध का हिसाब चुकाना होगा।"

गृहमंत्री अमित शाह ने तुरंत सुरक्षा समीक्षा बैठक बुलाई और कश्मीर में अतिरिक्त सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं।

देशभर में विरोध प्रदर्शन हुए, सोशल मीडिया पर हैशटैग #JusticeForPahalgamVictims ट्रेंड करता रहा। लोग गुस्से में हैं, लेकिन साथ ही डरे हुए भी हैं।

अब आगे क्या?

पहलगाम का हमला सिर्फ एक आतंकवादी घटना नहीं है, यह हमारे देश की सुरक्षा, एकता और पर्यटन के भविष्य पर एक गहरा हमला है। सवाल सिर्फ यह नहीं कि यह कैसे हुआ – सवाल यह है कि अब हम क्या करेंगे?

  • क्या हम अपने नागरिकों को सुरक्षित कर पाएंगे?

  • क्या सैलानियों के चेहरे पर मुस्कान फिर लौटेगी?

  • क्या कश्मीर फिर से "धरती का स्वर्ग" कहलाएगा?


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मूल भाव: एक इंसान की पुकार

कश्मीर की खूबसूरत वादियों में एक बार फिर खून बहा — लेकिन इस बार सवाल सिर्फ सुरक्षा का नहीं है, सवाल इंसानियत का है।


जब करनाल से हनीमून पर आए एक नवविवाहित जोड़े से उनका धर्म पूछा गया और फिर पति को गोली मार दी गई, तब क्या वो धर्म के खिलाफ लड़ाई थी — या इंसानियत के खिलाफ?


जब एक औरत ने कहा "मुझे भी मार दो" और आतंकी ने कहा "जा मोदी को बता देना, हम लौट आए हैं," — तो ये धर्म था या दरिंदगी?


हम क्या कर रहे हैं धर्म के नाम पर?


हम अपनी पूजा, नमाज़ या पाठ से दूसरों को परेशान नहीं करते, हम एक-दूसरे के त्योहारों पर मिठाई बांटते हैं।

फिर ये कौन लोग हैं, जो धर्म के नाम पर गोलियाँ चलाते हैं?


> हम धर्म के नाम पर इंसानियत नहीं छोड़ते,

पर ये धर्म के नाम पर इंसानों को मार डालते हैं।

आतंकवाद का धर्म नहीं होता – लेकिन उसका असर होता है


हर बार हम यही कहते हैं: "आतंकवाद का कोई धर्म नहीं होता।"

सही बात है। लेकिन हर बार मारा भी वही जाता है – जो निर्दोष है, जो किसी विवाद का हिस्सा नहीं है।


अब चुप रहना पाप है

अब सिर्फ शोक जताने से कुछ नहीं होगा। अब समय है:

  • नफ़रत के हर रूप को नकारने का

  • आतंक को धर्म से अलग करने का

  • और इंसानियत को सबसे ऊपर रखने का


अंतिम विचार: इंसानियत की हार या जागने का वक्त?

जब कोई चार साल का बच्चा आतंक की वजह से अपनी माँ की गोद में दम तोड़ता है, तब इंसानियत हारती है। लेकिन जब एक देश एकजुट होकर आतंकवाद के खिलाफ खड़ा होता है, तो उम्मीद जीतती है।

इस घटना ने हमें हिला दिया है। लेकिन यही समय है, जब हम नफरत के खिलाफ प्रेम, डर के खिलाफ हिम्मत और हिंसा के खिलाफ शांति का रास्ता चुनें।


"धर्म की रक्षा के नाम पर

अगर तुमने किसी माँ की गोद सूनी की…

तो तुम किसी धर्म के नहीं, सिर्फ मौत के पुजारी हो।"



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