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चंद्रकांता -एक तिलिस्मी दुनिया की प्रेम कहानी

Writer's picture: Anu GoelAnu Goel

"चंद्रकांता" एक प्रसिद्ध हिंदी उपन्यास है जिसे देवकीनंदन खत्री ने लिखा था। यह हिंदी साहित्य का पहला ऐसा उपन्यास माना जाता है, जिसने पाठकों में अपने किस्से-कहानी से खासा आकर्षण उत्पन्न किया। यह उपन्यास एक राजकुमारी चंद्रकांता और राजकुमार वीरेंद्र सिंह की प्रेम कहानी पर आधारित है, जो रहस्यमयी और रोमांचक घटनाओं से भरी हुई है।

Chandrakanta, Devki nandan khatri

उपन्यास में जादुई तत्वों, तिलिस्मों (जादू के किलों) और ऐयारों (गुप्तचरों) का भी वर्णन है, जिससे यह और भी अधिक दिलचस्प बन जाता है। इसमें तिलिस्म, गुप्त गुफाएँ, और विभिन्न पहेलियों का रोमांचक चित्रण किया गया है। खासतौर पर ऐयारी (गुप्तचरी कला) का विवरण इस उपन्यास की विशेषता है, जो बाद में आने वाले ऐयारी उपन्यासों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना।


प्रमुख पात्र:


चंद्रकांता: विजयगढ़ की राजकुमारी, जो वीरेंद्र सिंह से प्रेम करती है।

वीरेंद्र सिंह: नौगढ़ के राजकुमार, चंद्रकांता के प्रेमी।


कृपाबसि: एक ऐयार जो वीरेंद्र सिंह का सहायक है और तिलिस्म को समझने में कुशल है।


बादशाह राम सिंह और बद्रीनाथ: विभिन्न राजाओं और ऐयारों का भी कहानी में उल्लेख है।


"चंद्रकांता" की कहानी विजयगढ़ की राजकुमारी चंद्रकांता और नौगढ़ के राजकुमार वीरेंद्र सिंह के प्रेम के इर्द-गिर्द घूमती है। दोनों के प्रेम में कई बाधाएँ आती हैं, जिनमें मुख्यतः दोनों राज्यों के बीच की दुश्मनी शामिल है। वीरेंद्र सिंह अपनी प्रेमिका चंद्रकांता से विवाह करना चाहता है, लेकिन उनके रास्ते में तिलिस्म (जादुई किला) और षड्यंत्रकारी ऐयारों के कारण कई कठिनाइयाँ आती हैं।

Story of Chandrakanta

कहानी में रोमांच तब बढ़ता है जब चंद्रकांता को एक तिलिस्म में कैद कर दिया जाता है। वीरेंद्र सिंह और उनके वफादार ऐयार कृपाबसि इस तिलिस्म को तोड़ने और चंद्रकांता को बचाने के लिए प्रयास करते हैं। इस दौरान उन्हें कई रोमांचक घटनाओं और कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। अंततः वीरेंद्र सिंह अपनी बुद्धिमत्ता और साहस के बल पर तिलिस्म को भेदने में सफल होते हैं और चंद्रकांता से मिलकर उनका प्रेम सफल होता है।

इस उपन्यास की लोकप्रियता इतनी अधिक थी कि इसके कारण हिंदी भाषा में उपन्यास पढ़ने का चलन बढ़ा, और देवकीनंदन खत्री का नाम घर-घर में प्रसिद्ध हो गया।

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