खाटू श्याम बाबा को भगवान श्रीकृष्ण का अवतार माना जाता है। वे भक्तों के संकट हरने वाले और इच्छाएँ पूरी करने वाले देवता हैं। राजस्थान में जयपुर से करीब 80 किमी दूर सीकर जिले के खाटू गांव में खाटूश्याम जी का मुख्य मंदिर स्थित है, जो हर साल लाखों भक्तों की आस्था का केंद्र होता है।
हर महीने एकादशी पर यहां मेल लगता है। सावन कृष्ण एकादशी यानी पुत्रदा एकादशी पर श्याम बाबा के दर्शन करने बड़ी संख्या में भक्त पहुंचते हैं ।
बाबा को हारे का सहारा कहा जाता है। इसी वजह से बाबा के भक्तों की संख्या काफी अधिक है। चलिए पढ़ते हैं खाटू श्याम जी से जुड़ी कथा...
घटोत्कच के पुत्र थे बर्बरीक
बाबा श्याम के रूप में प्रसिद्ध ‘खाटू श्याम’ का संबंध महाभारत काल से है, पौराणिक मान्यता है कि खाटू श्याम पांच पांडवों में एक महाबली भीम के पौत्र थे। जिसका नाम बर्बरीक था।
खाटूश्याम जी का मूल नाम बर्बरीक है। द्वापर युग में यानी महाभारत के समय पांडव पुत्र भीम के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे बर्बरीक। बर्बरीक बहुत शक्तिशाली थे। जब महाभारत युद्ध शुरू हुआ तो बर्बरीक की माता ने उनसे कहा कि कौरव-पांडवों का युद्ध शुरू हो गया है। तुम भी युद्ध में जाओ और जो भी पक्ष कमजोर हो, जो हार रहा हो, उसकी ओर से युद्ध लड़ना।
बर्बरीक माता की बात मानकर युद्ध भूमि के लिए निकल पड़े। बर्बरीक को तीन बाण धारी भी कहा जाता है। उनके पास तीन ऐसे दिव्य बाण थे जो अभेद थे। ये बाण अपना लक्ष्य पूरा करके वापस बर्बरीक के तरकश में लौट आते थे। बर्बरीक को युद्ध में कोई भी हरा नहीं सकता था।
बर्बरीक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर थे! ऐसा कहा जाता है कि पूरा महाभारत युद्ध समाप्त करने के लिए बर्बरीक को केवल 3 बाण की आवश्यकता थी।
जब बर्बरीक युद्ध भूमि जा रहे थे तो मार्ग में बर्बरीक की मुलाकात श्रीकृष्ण से हुई। बर्बरीक ने श्रीकृष्ण को अपनी माता की आज्ञा के बारे में बताया और कहा कि वे हारे का सहारा बनेंगे।
श्रीकृष्ण को मालूम था कि युद्ध के अंत में कौरव हार जाएंगे और ऐसे में बर्बरीक कौरवों की ओर से युद्ध लड़ेगा तो पांडव युद्ध जीत नहीं पाएंगे। बर्बरीक की वजह से धर्म की हार होगी।
बर्बरीक की वीरता का नमूना:
बर्बरीक ने अपनी वीरता का छोटा-सा नमूना दिखाने के लिए भगवान कृष्ण और अर्जुन को अपने पास बुलाया। एक वृक्ष के पास खड़े होकर भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि यह जो वृक्ष है इसके सारे पत्तों को तुम एक ही तीर से छेद कर दिखा दो तो मैं तुम्हारी वीरता को मान जाऊंगा। बर्बरीक श्री कृष्ण ने आज्ञा लेकर अपने तीर को वृक्ष की तरफ चला दिया। जब तीर एक-एक कर पेड़ के सारे पत्तों को छेदता जा रहा उसी दौरान एक पत्ता टूटकर नीचे गिर गया जिसे श्री कृष्ण ने यह सोचकर पैर से छुपा लिया की यह छेद होने से बच जाएगा लेकिन सभी पत्तों को छेद करता हुआ वह तीर श्री कृष्ण के पैर के ऊपर आकर रुक गया। तब बर्बरीक ने कहा की प्रभु आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा है कृपया अपना पैर हटाइए, क्योंकि मैंने तीर को सिर्फ पत्तों में छेद करने की आज्ञा दी है आपके पैर को छेदने की नहीं।
भगवान श्री कृष्ण ब्राह्मण का भेष बनाकर अगली सुबह बर्बरीक के शिविर पर पहुंच गए और दान मांगने लगे। बर्बरीक ने कहा- हे ब्राह्मण देव! आपको क्या चाहिए? ब्राह्मण रूप में भगवान श्री कृष्ण ने कहा कि जो मैं मांगूंगा तुम दे नहीं पाओगे। लेकिन श्री कृष्ण ने बर्बरीक को अपने शब्द जाल में फंस लिया और भगवान कृष्ण ने उससे उसका शीश दान में मांग लिया।
भगवान कृष्ण ने दिया वरदान:
बर्बरीक ने अपने पितामह पांडवों की जीत के लिए अपनी इच्छा से शीश का दान कर दिया और उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा परंतु मेरी एक इच्छा है, मैं ये पूरा युद्ध देखना चाहता हूं।
श्रीकृष्ण बर्बरीक की ये बात मानने के लिए तैयार हो गए। बर्बरीक ने अपना सिर काटकर श्रीकृष्ण को दान कर दिया। इसके बाद श्रीकृष्ण ने एक ऐसी ऊंची जगह पर बर्बरीक का सिर रख दिया, जहां से वे पूरा युद्ध देख सके।
बर्बरीक के इस बलिदान से प्रसन्न होकर श्री कृष्ण ने बर्बरीक को कलियुग में स्वयं के नाम से पूजित होने का वरदान दिया। हारे हुए लोगों की मनोकामनाएं तुम्हारी पूजा से पूरी हो सकेंगी।
श्रीकृष्ण के वरदान की वजह से खाटू श्याम जी हारे के सहारे के रूप में प्रसिद्ध हो गए।
कृष्ण ने दान में लिया बाबा श्याम का शीश जहां रखा था उस स्थान का नाम ही खाटू है। जिस कारण आज बर्बरीक को खाटू श्याम के नाम से पूजा जाता है।
खाटू श्याम मंदिर की विशेषताएँ
मेला और उत्सव: हर साल फाल्गुन महीने में यहाँ भव्य मेला लगता है जिसे फाल्गुन मेला कहा जाता है।
ज्यादा मान्यता: खाटू श्याम जी के मंदिर में भक्त 'जय श्री श्याम' और 'हारे का सहारा बाबा श्याम हमारा' के जयकारे लगाते हैं।
प्रसाद और दर्शन: खीर, फल और मिठाई बाबा को अर्पित की जाती है और प्रसाद के रूप में भक्तों में बांटी जाती है।
खाटू श्याम जी की आरती
जय श्री श्याम हरे, बाबा श्याम हरे,
खाटू वाले श्याम, संकट हरता तू,
जय जय बाबा श्याम, तेरा नित गुण गाएँ हम।
अगर आप कभी राजस्थान जाएँ, तो खाटू श्याम बाबा के दर्शन जरूर करें। बाबा श्याम के आशीर्वाद से हर संकट टल जाता है और मनोकामना पूर्ण होती है।
खाटू श्याम बाबा को "हारे का सहारा" कहने के पीछे उनकी करुणा, दया और भक्तों के प्रति उनके अद्भुत प्रेम की गहरी मान्यता है।
बाबा को "हारे का सहारा" कहने का कारण और कथा:
महाभारत काल में जब बर्बरीक (खाटू श्याम जी) ने श्रीकृष्ण से कहा कि वे युद्ध में उसी पक्ष की ओर से लड़ेंगे जो हार रहा होगा, तो इसका अर्थ यह था कि वे हमेशा असहाय, कमजोर और पराजित होने वालों का साथ देंगे। श्रीकृष्ण ने उनकी इस प्रतिज्ञा और करुणा को देखकर कहा:
"तुम कलियुग में 'श्याम' के नाम से पूजे जाओगे और जो भी तुम्हें सच्चे मन से पुकारेगा, तुम्हारा सहारा उसे मिलेगा। जो हार चुके हैं या जिनका कोई सहारा नहीं है, वे तुम्हें पुकारेंगे और तुम्हारी कृपा से उनकी विपत्तियाँ दूर होंगी।"
"हारे का सहारा" का अर्थ:
आखिरी उम्मीद: जब इंसान की सारी आशाएँ टूट जाती हैं, तब लोग बाबा श्याम को याद करते हैं।
भक्तों की पुकार: माना जाता है कि जो भी हार के कगार पर होता है, चाहे वह जीवन में किसी भी समस्या से जूझ रहा हो, श्याम बाबा उसे सहारा देते हैं और उसका उद्धार करते हैं।
मनोकामना पूर्ण: खाटू श्याम बाबा का दर्शन करने और सच्चे मन से प्रार्थना करने से हर संकट दूर हो जाता है और सफलता मिलती है।
भक्तों की श्रद्धा और भजन:
भक्त अक्सर गाते हैं:
"हारे का सहारा, बाबा श्याम हमारा"
इस भजन के माध्यम से भक्त अपनी हार, दुख और परेशानियों को बाबा के चरणों में समर्पित करते हैं और बाबा श्याम उनकी रक्षा करते हैं।
खाटू श्याम जी का वरदान:
खाटू श्याम जी के मंदिर में आने वाले हर भक्त को यह विश्वास होता है कि बाबा उनकी हर विपदा को हर लेंगे। इसलिए उन्हें "हारे का सहारा" कहा जाता है।
कहते हैं कि जब सब दरवाजे बंद हो जाते हैं, तब खाटू श्याम बाबा का दरवाजा हमेशा खुला रहता है।
कैसे पहुंच सकते हैं खाटूश्याम जी के मंदिर
ये मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में है। खाटूश्याम जी के मंदिर जाना चाहते हैं तो जयपुर पहुंचने के बाद यहां से कई साधन आसानी से मिल जाते हैं। जयपुर से प्रायवेट कैब मिल सकती है, कई बसें चलती हैं जो सीधे खाटूश्याम जी के मंदिर तक पहुंचा देती हैं। अगर आप ट्रैन से आना चाहते हैं तो खाटूश्याम जी के धाम का करीबी रेलवे स्टेशन रिंगस है। रिंगस से खाटू धाम करीब 18 किमी दूर है।
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