हर दिन मां का है,
हर रात मां की है।
हमारी हर सांस कर्जदार मां की है।
मां की ममता का कर्ज तो स्वयं श्री कृष्ण नहीं उतार पाए,
हम इंसानों के बस की ये बात कहां की है।
मां का आभार व्यक्त करने के लिए आज का दिन है जो उन्होंने किया हम उसका लेश- मात्र भी उनके लिए कुछ नहीं कर सकते इसलिए सिर झुकाकर सिर्फ उन्हें दिल की गहराइयों से शुक्रिया बोलते हैं कि आप हमें इस दुनिया में लाई और इस दुनिया में जीने लायक बनाया उसके लिए हम आखिरी सांस तक आपके ऋणी हैं मां🙏
मां की ममता का रस इतना अनमोल और मधुर है कि स्वयं श्री कृष्ण को इस रस का पान करने के लिए धरती पर आना पड़ा। मां की ममता और प्यार का सुख अनुभव करने के लिए उन्होंने मां यशोदा को अपने मुख में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के दर्शन करवा कर योगमाया से अगले ही क्षण सब विसमर्ण करवा दिया जिससे मैया उन्हें भगवान समझकर उनकी पूजा ना करने लग जाए और वो मात्तृ प्रेम से वंचित ना रह जाएं।
जब राधा रानी ने उनसे पूछा प्रभु आपने मां से यह सत्य क्यों छुपाया कि आप त्रिभुवन पति श्री हरि है, तब भगवान ने बताया कि अगर मैं यशोदा मां को बता देता कि मैं ही वह श्री हरिविष्णु हूं जिसकी वो हर दिन पूजा करती है तो मां मुझे भगवान बनाकर मंदिर में बैठाकर दिन- रात मेरी पूजा ही करेंगी बस, फिर मुझे ये मां का प्यार , ममता और मां की ये प्यार भरी डांट - मार कहां से मिलेगी ।
ऐसा ही एक मधुर विवरण श्री रामायण के बालकांड में मां कोशल्या और श्रीराम का मिलता है-
माता पुनि बोली , सो मति डोली,
तजुह तात यह रुपा,
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला,
यह सुख परम अनूपा ।।
सुनि बचन सुजाना , रोदन ठाना,
होई बालक सुरभूपा।
अर्थात श्री राम जब जन्में तो पूर्ण पुरुष के रुप में सुंदर वस्त्र, आभूषणों और आयुधों के साथ अलंकृत होकर अवतरित हुए तो कोशल्या मां ने कहा आप ये कैसे बनकर आए हैं प्रभु , मेरे घर तो आप नवजात शिशु रुप में निर्वस्त्र रोते हुए आईए, तभी आपको मां का प्यार , ममता , अनुराग मिलेगा ।
आप जान लीजिए यही परम सुख है। यह सुख आपको तीनों लोकों के स्वामी होकर भी और कहीं नहीं मिलेगा और मां की ममता के वशिभूत भगवान विष्णु ने अगले ही पल नवजात शिशु के रूप में आकर रूंदन करना शुरू कर दिया ।
मां के ममता और त्याग की तुलना संसार की किसी वस्तु तो क्या किसी भावना , किसी रिश्ते से नहीं की जा सकती । अब और क्या कहें हम बने ही अपनी मां के शरीर से हैं।
मां का दिल हमारे दिल में धड़कता है,
मां का रक्त हमारी रगों में बहता है।
विज्ञान के अनुसार एक मनुष्य का शरीर 45del (units) तक का दर्द बर्दाश्त कर सकता है, परंतु एक बच्चे को जन्म देते वक्त एक मां को 57del( units)तक दर्द सहन करना होता है ,जो कि 20हडि़ड्यों के एकसाथ टूटने वाले दर्द से भी कहीं अधिक होता है, और यह सब जानते हुए भी हर मां खुशी-खुशी अपने बच्चे को जन्म देती है।
यह दर्द हंसते-हंसते सहन करने की क्षमता सिर्फ मां ही होती है ।कहा जाता है भगवान स्वंय हर जगह हमारे साथ नहीं हो सकते , इसलिए उन्होंने अपने रुप में मां को भेज दिया है।
किसी बड़े से बड़े कवि, लेखक के पास भी ऐसे शब्द नहीं जिसमें वो मां के प्रेम-स्नेह, त्याग- तपस्या का व्याख्यान कर सकें ।
मां के लिए क्या लिखना ,
मां ने ही हमें लिखा है।
अपना दूध पिला,
हमें जीवन दिया है।
हमारी ऊंगली पकड़ ,
हमें चलना सिखाया।
पहला प्यार, पहला लड़ाई,
पहला सबक, पहली पिटाई,
सब मां का ही है मेरे भाई।।
मां ही खुदा, मां ही रहनुमा,
मां के बिना कोई सुख कहीं ना।।
बच्चा कैसा भी हो अच्छा-बुरा, लायक- नालायक पर मां के लिए अपना बच्चा ही दुनिया का सबसे अच्छा बच्चा होता है। मां के विचार आपसे अलग हो सकते हैं पर उनसे बड़ा हितेषी आपका कोई नहीं हो सकता है।
दुनिया का हर रिश्ता दूसरा मिल सकता है पर दूसरी मां नहीं मिल सकती। पूरी दुनिया में हर रिश्ते का अलग-अलग रूप हो सकता है पर मां- बच्चे का रिश्ता सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में एक सा होता है। मां बस मां होती है ।
मां कहीं नहीं जानी चाहिए ,
मां हमेशा रहनी चाहिए।
मां के बिना संसार में कुछ नहीं है।
घर घर नहीं है,
हम हम नहीं है।
हम चले जाएं पर मां कहीं नहीं जानी चाहिए।
मां ही दुनिया है,
मां ही रूह का सुकून है।
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